परमपूज्य श्री माताजी प्रणित सहजयोग एक शाक्त धर्म है, जो अपने अंदर स्थित ‘कुंडलिनी शक्ती’ की बात करता है। जिसे अध्यात्म में ‘कुंडलिनी शक्ती’ कहते है, इसे सायन्स की भाषा में ‘कॉस्मीक एनर्जी ‘ कहते है । सहजयोग लेख लेखन की इस शृंखला में हम आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना, इस आत्मसाक्षात्कार का यथार्थ अनुभव अपनी उँगलियो के पोरोपर, अपने तालुभाग पर ,शीतल चैतन्य लहरीयॉं के रूप में करना और अपना व्यक्तीत्व दिनोदिन, स्थिर, शांत आनंदमयी बनाना, या इस तरह का परिवर्तन अपने अंदर घटित हो रहा है क्या? इस तथ्य पर आत्मपरीक्षण करना, इसे सहजयोग में चित्तशुद्धी कहा गया है । जो भी साधक इस शक्ती से जुडना चाहता है, इससे एकाकार होने की शुद्ध इच्छा रखता है, उसके अंदर तत्क्षण यह आत्मसाक्षात्कार घटित होता है, परंतु किसी किसी को इसकी अनुभूती नही होती, वो साधक एक ,दो दिन ध्यान करने का प्रयास करता है और फिर इसे छोड देता है । अगर इस शक्ती को अपने अंदर स्थापित करना है, तो आपको आपके चित्तपर एक अलौचक की तरह नजर रखनी होगी । खूद से प्रश्न पूछना होगा की अब, इस वक्त मेरा चित्त कहॉं है? ये सब नकारात्मकताओ पर मैं क्यूं चिंतन कर रहा हूँ । इस सभी विचारो से मुझे क्या लाभ होनेवाला है? तत्क्षण अपना चित्त अपने राईट स्वाधिष्ठान पर लेके आयेंगे । परमेश्वरी मॉं से या उस शक्ती से प्रार्थना करेंगे, मॉं मै एक शुद्ध आत्मतत्व हूँ । आप मेरा चित्त शुद्ध कर दिजीये । अगर दो मिनिट भी आप इस तरह की प्रार्थना करते है, तो आप देखेंगे धीरे धीरे आपका चित्त शांत होगा, और शांत नही हुआ तो आपको बता देगा की आप शांत नही है, अस्थिर है । आप खूद उस अस्थिरता का कारण ढुँढेगे और उस कारण को उस शक्ती के श्रीचरणो में समर्पित कर देंगे । परमपूज्य श्री माताजी कहते है, आपके चित्त पे शक्ती बैठी है ।We live by liver क्यूंकि हमारा चित्त gray cells को Brain Cells में Convert कर हमे एकाग्रता देता है, ज्यो यशस्विता की कुंजी है । परंतु अगर हम हमारे चित्त को कुडे कचरे जैसे विचारो से भर देंगे तो हमारा लीव्हर गरम हो जायेगा और हमें अनेक बिमारीयों के चपेट में ले लेगा । इसलिये हम आपसे विनम्र प्रार्थना करते है की, अपना आत्मसाक्षात्कार मॉंगकर अपना चित्त शुद्ध कर, इस पवित्र शक्ती जुडकर अपना जीवन भी आनंद से भरने के लिए सहज योग से जुडे दे !
मनिषा थिगळे
Mo.9175733671