हम सबने मकर संक्रांति मनायेंगे| मकर संक्रांति का प्राकृतिक अर्थ है कुछ नया होना| क्योंकि संक्रांति प्रकृति में परिवर्तन का ही दिन है| आज सूर्य अपना स्थान छोड़ पूरी तेजस्विता के साथ उत्तरायण में प्रवेश कर रहे हैं्| प्रकृति के इस परिवर्तन को हम उल्लास के साथ मनाते हैं्| जिनके अंदर कुंडलिनी शक्ति का जागरण हो गया है, वे नये हो गये हैं्| संक्रांति के समय हमें यह समझना होगा कि हमारे अंदर जो देवी विराजमान है, उसे एक परिवर्तन के साथ हम कैसे खुश करें्|
संक्रांति के दिन हम अपने रिश्तेदारों को, पडोसियों को, दोस्तों को तिल गुड देते हुए उनसे मधुर मधुर बोलने का आग्रह करते हैं्| तिल गुड प्यार प्रगट करने हेतु और मधुर बोलना एक सामाजिक जिम्मेदारी का आभास कराना है| जब हम किसी से कुछ लेते हैं तो वापस लौटाना सिर्फ एक औपचारिकता नहीं वरन एक जिम्मेदारी भी बन जाती है|
इस कथन पर एक छोटी सी कहानी है जो इसी संदर्भ को स्पष्ट करती है- एक बार धर्मज्ञ महाराज यदु की आदिगुरु दत्तात्रेय से भेंट हुई| उन्होंने सहज ही पूछ लिया कि आप छोटी सी आयु में ही घोर तपस्वी के साथ साथ शास्त्रज्ञ और महान विद्वान भी बन गये हैं, इतना सब कुछ आपने कहॉं से सीखा, और आपके यशस्वी गुरु कौन हैं्|
दत्तात्रेय ने कहा मेरा कोई एक गुरु हो तो बताउं, मैं तो प्रकृति के सभी प्राणियों और जीव जंतुओं से और पंचतत्वों सूर्य, धरती, आकाश, वायु और जल सबसे शिक्षा लेता हूं्|
यदु ने पूछा, सूर्य से आपने क्या शिक्षा ग्रहण की?’’
दत्तात्रेय ने कहा सूर्य अपनी किरणों के जरिये पृथ्वी से जल प्राप्त करता है परन्तु जमाखोरी नहीं करता| सूर्य पृथ्वी से जो भी जल संग्रह करता है उससे कई गुना पृथ्वी को वर्षा के रुप में वापस कर देता है उस जल से धरती हरी भरी रहती है, फसलें उगती है, पशुओं को चारा मिलता है|
मैंने सूर्य की इस प्रवृत्ति से शिक्षा ली है कि योगी को कभी किसी वस्तु का संग्रह नहीं करना चाहिए्| योगी को चाहिए कि वह इंद्रियों से पदार्थ ग्रहण तो कर ले लेकिन समय आने पर सूर्य की तरह उसका त्याग करने में जरा भी विलंब ना करे|
दरअसल हम संक्रांति में तिल गुड बांटते हुए हम सूर्य के प्रति अपनी कृतज्ञता ही व्यक्त करते हैं्| सूर्य की उपासना सिर्फ हाथ जोड़ने से नहीं होगी बल्कि देने की प्रवृत्ति को जीवन में उतारने से होगी| महिलायें इस पर्व में एक दूसरे को हल्दी कुंकुम लगाकर तोहफे देती है, जो देने के महत्व को सिद्ध करता है| समाज को यदि देनी है तो शांति ही देनी होगी| शांति बांटने के लिए हमें पारिवारिक दायित्व को निभाते हुये योगी बनना होगा, तभी हम संग्रह करने के स्थान पर समाज के उत्थान हेतु शांति दे पायेंगे| जब हम देंगे तो जो आत्मिक संतुष्टि मिलेगी वो हमें ईश्वरीय साम्राज्य के योग्य बनायेगी|्| आपको सहज योगी बनने की इच्छा करनी होगी, तभी हम सब मिलकर दुनिया को सत्मार्ग पर ला सकेंगे, अच्छाई सीखा सकेंगे और परम चैतन्य की अनुभूति से आल्हादित कर पायेंगे, उत्क्रांति के मार्ग पर पहुंचा पायेंगे|
संक्रांति उत्क्रांति का पर्व है अतः आप भी उत्क्रांति की ओर एक कदम बढायें, सहज योग से जुड़े|
सहज योग पूर्णतया निशुल्क है*| अपने आत्म साक्षात्कार को प्राप्त करने हेतु अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर १८०० २७०० ८०० से प्राप्त कर सकते हैं या वेबसाइट www.sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं्|
निर्मला नायर
नागपूर (महाराष्ट्र
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