आज हम अपने अंतस्थित लक्ष्मीतत्व की पूजा करने जा रहे है | परमपूज्य श्री माताजी केहते है, आज तक हम दिवाली मना रहे थे परंतु सहज योग की शुरुवात होने के बाद दीपावली शुरू हो गई है | दिवाली के दिन हम बाजार से मिट्टी के लिए खरीद कर लाते है | उन्हे पानी मे भिगोकर सुखाते है , रात मे तेल डालकर प्रकाशित करते है |सहज योग मे दीप प्रकाशित करने का अर्थ है आत्मसाक्षात्कार पाकर, हृदय दीप प्रकाशित करना | दिवाली के दिन मिट्टी के दिये थोडी देर प्रकाश देने के बाद बुझ जाते है परंतु हृदय मे प्रकाशित सहजदीप एक ऐसा अनुठा दीप है, जिसमे प्रेम का तेल डालकर हजारो दिपो को प्रकाशित किया जा सकता है | सहज योग मे आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के बाद साधक के पिंड मे स्थित कुंडलीनी शक्ती उर्ध्वगामी होकर ,सहस्रार भेदनकर, साधक को योग प्रदान करती है | जब नियमित ध्यान से साधक योगरत होता है, तो उसका हृदय श्री माताजी के इस निर्व्याज प्रेम से सदैव परिपूर्ण रहता है | मकरंद रस का झरना सदैव उसके हृदय देश से बहता रहता है | यह सुंदर अनुभूती पाकर मानव अपने मे संतुष्ट हो जाता है ,उसके हृदय मे बसा हुआ यह प्रकाश उसके हर एक अंग से टपकता है, उसके आखे हिरे जैसी चमकती है और मुखमंडल अबोध बच्चो जैसा बन जाता है |
हमारा लक्ष्मी तत्व मध्य सुषम्णा पर स्थित है और यह महालक्ष्मी गुरुतत्त्व पर आधारित है| यह गुरुतत्त्व हमे संतुलन प्रदान करता है | संतुलन एक प्रॅक्टिकल चीज है अगर आप सायकल चला रहे है ,रास्ते पर भी चल रहे है तो आपमे संतुलन चाहिये, आपको मध्य मे आना होगा | मध्य मे आने का अर्थ है सुशुम्णा पर आना | हमारे किसी भी चीज मे अतिशयता ,आक्रमकता नही होनी चाहिये| आज उत्क्रांती के पाडाव पर हम अमिबा से मानव बने और इसी महालक्ष्मी की आशीर्वाद से हम आत्मसाक्षात्कारी बन सकते है | परमपूज्य श्री माताजी केहते है, प्राचीन काल मे किसी एक दुसरे को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता था और वे आत्मसाक्षात्कारी संत दीप बनकर अपने समाज मे प्रकाश फैलाते थे और आज भी उनके चैतन्यमयी विचारो का दीप तारांगण मे झिलमिल कर रहा है , वे केवल एक ,दो या पाच, दस संत थे परंतु आज हजारो लोगो का आत्मदीप प्रकाशित हो रहा है| यह आत्मदीप एक ऐसा अनुठा दिप है,जिसमे प्रेम का तेल डालकर जलाया गया है और इस दीप की ज्योती है अपनी कुंडलीनी ! यहा एक -एक आत्मसाक्षात्कारी साधक आज हजारो दिप प्रकाशित कर सकता है, सारे सहज योगी साधको को यह कार्य विद्यालक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त कर, अत्यंत सुंदर, संतुलित तरीके से करना होगा | एक सच्चा सहजी सदैव विनम्र ,सीधा साधा और प्रेममयी होगा और दीपावली अर्थात एक साथ अनेक दीप प्रकाशित करने के लिए सदैव तयार रहेगा | परमपूज्य श्री माताजी केहते है, और एक दिन संपूर्ण तारांगण इस प्रकार के अनुठे आत्मसाक्षात्कारी मानवो के अनगिनत दीपोसे जगमग करेगा | इस प्रकार की अनुठी दिवाली आप भी मना सकते है, सहज योग सिखते है!!
मनिषा थिगळे
नागपूर
Mo.9175733671
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