सहज योग एक आधुनिक ध्यान पद्धती है, जिसके माध्यम से हम तत्क्षण योग को प्राप्त कर सकते है | जिसे प्राचीन काल मे जोगवा कहते थे, यह वही योग है, जब साधक इस योग पर आरूढ हो जाता है ,तब जान जाता है की ,मा दुर्गा का स्थान सूक्ष्म शरीर मे हृदय चक्र पर है| जब साधक इडापिंगला का संतुलन साध कर अपना चित्त हृदय चक्र पर एकाग्र कर प्रार्थना करता है,दुर्गा ,दुर्गतीशमनी दुर्गा पद्विनिवारणी दुर्गमच्छेदिनी, दुर्गसाधिनी, दुर्गनाशीनी, दुर्गतोद्धारिनी प्रसन्न भव ,प्रसन्न भव | तब वह दुर्गा माता, उसके सारे दुःख, दर्द ,पीडा का नाश कर देती है ,उसे दुष्ट विचारो के भवंडर से बचाती है ,उसके ऊपर आने वाले संकटो की आच भी उस पर आने नही देती | वह दुर्गमध्यानभाषिनी के रूप मे उस साधक से आपदाओ के समय भी ,ध्यान करवा कर, उसे निरानंद प्रदान करती है, साधक के चित्त मे आने वाले प्रत्येक संकट को वह भ्रमरंबा जान जाती है और तुरंत अपने गनो को भेज कर साधक को भयमुक्त, दुःखमुक्त कर आनंद का साम्राज्य प्रदान करती है ,ये सारे आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए हमे आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर अपने हृदय स्थित श्री दुर्गा को जगाना होगा |
परमपूज्य श्री माताजी ने अपनी असंख्य अमृतवाणीयोमे मा दुर्गा के सूक्ष्मति सूक्ष्म आशीर्वाद का वर्णन किया है | आत्मसाक्षात्कारी साधको को मा दुर्गा शरीरि के प्रति निरासक्त बना देती है, साधक विषमता युक्त वातावरण मे खुद को सहजता से समायोजित कर सकता है, बाद में नाते रिश्ते के बंधनो से भी र्निलिप्त कर देती है, इसके भी आगे जाकर, साधक ध्यान कर रहा है, सहज कार्य कर रहा है, सहज योग के बारे मे विज्ञापन या पुस्तक लिख रहा है, ये भी अहंकार ही है और यह सूक्ष्म अहंकार भी साधक के आत्मोन्नती के उत्थान मे बाधा है यह बात वो दुर्गमासूरहंत्री के रूप मे जान जाती है और साधक को निष्काम कर्मयोगी बना देती है | जिस प्रकार सुरज संपूर्ण धरती को एकसमान जीवन देता है, वृक्ष के मूल मे दिया गया जल, वृक्ष के हर टेहणी और पत्ते का अत्यंत सुंदर तरीके से पोषण करता है, उसी प्रकार मा भगवती के चरण कमल से बहने वाला परमचैतन्य साधक के हृदय को प्रेम और करुणा से भर देता है, जैसे ही वह साधक ,मा भगवती को अपने हृदय मे याद करता है तो, मकरंद रस का झरना उसके हृदय देश से बहता है ,यह सुंदर अनुभूती प्राप्त करने के लिये साधक को मा भगवती के आशीर्वादो के प्रती विनम्र होकर ,समर्पण भाव से श्री हनुमानजी जैसा भक्ती भाव विकसित करना होगा | तब वह उस शक्ति से कहता है, मा आप ही कर्ता, आप ही भोक्ता, और आप ही भोग्या भी हो, ये सारा कार्य आप ही इस माध्यम से करवा रहे हो! आप भी मा दुर्गा के ये सारे आशीर्वाद प्राप्त कर सकते है, सहज योग सिखते है!!