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Friday, November 22, 2024

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शिव तत्व का सार-शुद्ध इच्छा, करुणा,चित् और आत्मा

परमात्मा द्वारा दिए गए इस सुंदर जीवन में हम सब बहुत सारे रिश्ते से जुड़े हुए हैं हमारे भाई बहन ,माता पिता, पति, बच्चे आदि |निश्चित रूप से इन सब के लिए हमारे हृदय में अपनापन, प्रेम, करुणा और स्नेह होगा जो स्वभाविक है| लेकिन क्या वही प्रेम और करुणा हम दूसरों के लिए महसूस करते हैं??‘‘शायद’’नहीं तो क्यों नहीं रख पाते| प्रेम और करुणा के लिए तो कोई धर्म जाति का भेद नहीं होता| ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारा ह्रदय संकुचित है अभीपूर्णतः खुला नहीं है| हमने अपनी आत्मा को जाना नहीं है| हमारी आत्मा का स्थान हमारे हृदय में हैं और हृदय में ही शिव जी का स्थान है जो हमें आत्म तत्व प्रदान करता है तो आइए जाने शिव तत्व का सार क्या है|
हमारे अंदर जो कुंडलिनी है वह शक्ति है और चक्र सीढ़ियां है |इस कुंडलिनी रूपी शक्ति की सहायता से चक्र रूपी सीढ़ियां चढ़कर हमें हमारे जीवन का अंतिम लक्ष्य प्राप्त करना है अर्थात शिव तत्व को प्राप्त करना |शिवजी के गुणों को आत्मसात करना एकआत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति ही कर सकता है| शिव जी अत्यंत ही पवित्र, निष्कलंक और हमारे हितेषी हैं्| प्रेम से जब हम दूसरों का ध्यान रखते हैं तो हमारा जीवन ही बदल जाता है और आनंद में हो जाता है| हर वस्तु हर बात में सुंदरता देखना प्रदान करना शिव जी का ही गुण है |हमारी दृष्टि में सुंदरता आ जाती है| शिव जी सभी कलाओं, लय संगीत के स्वामी हैं |हमारा जीवन लयबद्ध उन्ही की वजह से है |संपूर्ण सृष्टि की घटनाएं जैसे ९ महीने बाद बच्चे का आना, मौसम, ऋतु में परिवर्तन तथा अन्य चीजों में लय बनाए रखते हैं |लयबद्ध व्यक्ति का हृदय बहुत विशाल होता है |शिव जी का १ गुण यह है कि वह ‘‘ज्ञान’’के ‘’स्रोत’‘ है शुद्ध विद्या देते हैं | ‘‘विद्या ददाति विनयम’‘ शुद्ध विद्या प्राप्त करने के लिए हमें विनम्र होना चाहिए अर्थात अहंकारी व्यक्ति विनम्र नहीं हो सकता और उसे शुद्ध विद्या प्राप्त नहीं हो सकती| शिव जी बहुत ही सरल है बाहरी दिखावा उन्हें आकर्षित नहीं करता, उन्हें व्यक्ति का देवत्व लुभाता है |जब हम शिवतत्व में उतर जाते हैं तो हम निर्लिप्त हो जाते हैं्| किसी भी चीज से भौतिक सुख-सुविधाओं से या अन्य किसी परिस्थिति से हमें फर्क नहीं पड़ता| हम हर परिस्थिति में आनंद में रहना सीख जाते हैं्| शिव जी का एक और गुण है क्षमा शीलता जिन अपराधों के लिए गणेश जी भी क्षमा नहीं करते उन्हें शिवजी कर देते हैं परंतु विध्वंस करना भी उन्हीं का एक रूप है| यदि हम पावित्र्य के विरुद्ध , श्री आदिशक्ति के कार्य और आत्मा के विरोध में कार्य करते हैंतो शिव जी रुष्ट हो जाते हैं्| पूरे ब्रह्मांड का विनाश कर सकते हैं्| यदि हमें शिवजी के गुणधर्म को हमारे अंदर विकसित करना है तो हमें हमारे चित् को आत्मा पर स्थिर करना होगा |हमारा चित् कहां जा रहा है ?हमारा चित् क्या भौतिक सुख-सुविधाओं में है, स्वयं की आरामदायक स्थिति पर ,अपने शरीर पर या शिकायतें और आलोचना करने पर्|यदि हां तो चित् आत्मा पर नहीं है तो चैतन्य में लीन कैसे होगा| हम कहते हैं ना कि मैं न मन हूं, न शरीर हूं, नअहंकार हूं ,आत्मा में ही परमात्मा का वास है लेकिन हमने उसे आत्मसात नहीं किया |हम अपने शरीर की चिंता करते हैं, मन की बातों में अहंकार में उलझे रहते हैं्| अपने कंफर्ट जोन (लेाषेीीं ूेपश) से बाहर नहीं आना चाहते इसलिए हमारा चित् आत्मा पर नहीं रहता और हम शिव तत्व में स्थापित नहीं हो पाते|
चित् के अलावा हमारी इच्छाएं भी हमारी मृत्यु का कारण है (बुद्ध ने कहा है)जो भी इच्छा हम करते हैं उससे हम संतुष्ट नहीं होते| उसके पूरा होने से हमें आनंदित होना चाहिए |जब भी हम कोई शुद्ध इच्छा करते हैं तो हमारी कुंडलिनी उठ जाती है और जो इच्छा की नाड़ी हमारे हृदय में है उन्हें उसकी उध्वरगति हो जाती है | शुद्ध इच्छा वही है जो हमें आनंद दे| आनंद का तत्व भी शिव का तत्व ही है| हर चीज में आनंद खोजना चाहिए |दोष देखना ,कटाक्ष करना शिव तत्व नहीं है| हमें निरंजन( जिसमें कोई रंजना नहीं )हो कर देखना है, कोई प्रतिक्रिया नहीं |निरंजन देखना शिव का ही तत्व है |शिव का एक तत्व और होता है जिसे हम करुणा या निवाज्र्य ‘प्रेम‘कहते हैं जो प्रेम हम अपने परिवार के लिए रखते हैं वैसा ही प्रेम और अपनापन हमें सभी के लिए रखना है क्योंकि सहज योग सामूहिक है| हमें इसे अपने तक सीमित नहीं रखना है |हमें जो भी अपने घर गृहस्थी में, देश और विश्व में देना है उसमें चिपकन नहीं होनी चाहिए क्योंकि चिपकन से प्रेम की शक्ति क्षीण हो जाती है बढ़ती नहीं है |जैसे समझिए यदि पेड़ का प्रेम रूपी रस पेड़ में हर जगह जड़ ,शाखा ,फूल में सभी जगह जाता है लेकिन यदि वह किसी एक जगह पर रुक जाए तो पेड़ मर जाएगा| वैसे ही हमें करुणा और प्रेम में उतरना चाहिए जो सभी के लिए हो, कोई भेद ना हो और निस्वार्थ हो| करुणा मतलब आत्मा का भाव जब यह भाग हमारे अंदर आ जाता है तब यह करुणा किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं रहती और हमारा ह्रदय दूसरे की तरफ खिंच जाता है, हम करुणा में लीन हो जाते हैं्|
इस प्रकार जब हम हर विचार हर इच्छा में आनंद महसूस करते हैं करुणा से परिपूर्ण होते हैं तो हमारा चित् आत्मा के प्रकाश से आलोकित हो जाता है बहुत ही शुद्ध हो जाता है| ऐसा व्यक्ति सदैव झुका हुआ ,नतमस्तक रहता है उसे एहसास ही नहीं होता कि उसने कोई कार्य किया है(कर्ता भाव नहीं होता) अच्छे-अच्छे चमत्कार होने लगते हैं क्योंकि हमारे चित् में परमात्मा के प्रति प्रेम और विश्वास दृढ़ हो जाता है| इसलिए हमेंअपने चित् को शुद्ध रखना है क्योंकि शिव चित् स्वरूप है| शिव जी के चित् की शक्ति को चित्ती कहते हैं |और कोई भी कार्य चमत्कार इसी शक्ति से घटित होता है |लेकिन जब कोई कार्य बिगड़ जाता है तो हमें यह समझ लेना चाहिए कि हमारा चित् आत्मा से हट गया है |हमारे जीवन का अंतिम लक्ष्य शिव तत्व को प्राप्त करना है| शिव तत्व में स्थापित व्यक्ति इच्छा रहित अपनी आत्मा से संतुष्ट और भोला भाला होता है |लेकिन विष्णु तत्व को समझे बिना हम शिव तत्व को प्राप्त नहीं कर सकते |हमारी कुंडलिनी शक्ति विष्णु द्वारा बनाए गए मध्य मार्ग से उठती है इसी मार्ग से हमें शिव तत्व की प्राप्ति होगी और हम सुरक्षित रहेंगे| हृदय आत्मा का सिंहासन है और सब पर काबू रखता है | स्वचालित नाड़ी संस्था पैरा सिंपैथेटिक और सिंपैथेटिक तंत्र को भी नियंत्रित करता है| इसलिए सबसे पहले हमें अपने हृदय को तैयार और स्वच्छ करना है|
जय श्री माताजी

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